कर्मपथ

कर्मपथ पर जो मिले वैसा उसे स्वीकार तू,

भर हौसले की चाल से दे क़दमों को उछाल तू ।

एक घूंट की क्या प्यास है।
दो घूंट की क्या प्यास है।

अब निश्चय की छलांग एक गहरी भी तो मार तू,
कर्मपथ पर जो मिले वैसा उसे स्वीकार तू ।

कठिनाइयों की बेड़ियों में कस चुके ये जो कदम,
मिले थे इतने घाव आंखे अभी तक जो उनसे नम ।

ये प्रयास का जो शस्त्र है,अब धेर्य से दे तान तू ।
अब निश्चय की छलांग एक गहरी भी तो मार तू,
कर्मपथ पर जो मिले वैसा उसे स्वीकार तू ।

                                       ❤   by sahityashish

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मैंने उठते-बहकते धुएं से पूछा

प्रेम प्रीत