मैंने उठते-बहकते धुएं से पूछा
मैंने उठते-बहकते धुएं से पूछा,
तू क्यों इतनी हरकत में है,,
फ़िज़ा में घुल कर मिटने की चाहत में हूं।
कभी इधर कभी उधर अभी मैं भी नशे में हूं।
निकला जिसकी चिराग से,
उसी का दर्द मिटाने की फितरत में हूं।
एक बार नहीं दस बार सुलगाया गया हूं,
मैं मौज में हर बार उड़ाया गया हूं।
मैंने उस बेकरार दिल को समझाया,
महसूस किया है,
आखिर में क्यों राख में दफनाया गया हूं।
तू क्यों इतनी हरकत में है,,
फ़िज़ा में घुल कर मिटने की चाहत में हूं।
कभी इधर कभी उधर अभी मैं भी नशे में हूं।
निकला जिसकी चिराग से,
उसी का दर्द मिटाने की फितरत में हूं।
एक बार नहीं दस बार सुलगाया गया हूं,
मैं मौज में हर बार उड़ाया गया हूं।
मैंने उस बेकरार दिल को समझाया,
महसूस किया है,
आखिर में क्यों राख में दफनाया गया हूं।
❤ by sahityashish
सबाश भाई
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